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गुरुवार, मार्च 31, 2011

शायरों की महफिल से

 आज आप सभी पाठकों के लिए "जीवन का लक्ष्य" समाचार पत्र के सर्वप्रथम अंक अक्तूबर 1997 में प्रकाशित एक रचना के साथ ही पिछले दिनों मेट्रो रेल में यात्रा के दौरान "कहे" शेर प्रस्तुत है.
तुम अघोषित युध्द लड़ते हो
तुम जब-जब, अख़बार पढ़ते हो, 
एक अघोषित-सा युध्द लड़ते हो,
असत्य से सत्य के लिए, 
अन्याय से न्याय के लिए,
भ्रष्टाचार और अत्याचार के खिलाफ, 
युध्द.....महायुध्द......उनसे.......
जो संख्या में मुट्ठी भर है, 
मगर अकूत दौलत के स्वामी है,
और क्रूर, ताकतवर हैं, 
उनके दिमाग में धूर्तता है, छल है
उनके पास कानून, सत्ता का हथियार है, 
और वो हर हालत में, हमें दबाने, कुचलने,
खत्म करने को तैयार है, 
ऐसे में अपने अस्तित्व को 
कायम रखने के लिए
कुछ तो करना होगा, 
लिखें, पैने, नुकीले शब्द बाणों से, 
हमें यह युध्द लड़ना होगा, 
और.......इस महासंग्राम में,
मैं भी कलम का सिपाही बनकर, 
अपना सबकुछ न्यौछावर करने आया हूँ
"जीवन का लक्ष्य" के नाम से जलते, 
सुलगते शब्दों का हथियार
अख़बार लाया हूँ 
मेरा एक जीवन का लक्ष्य, 
असत्य का खंडन, पर्दाफाश.....
न्याय की स्थापना, सत्य का प्रचार,
रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का
पर्दाफाश करते हुए सनसनीखेज समाचार 
आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है
हमें मिलता रहेगा, 
जागरूक पाठकगण का सहयोग और प्यार.  
******************************************************
वो बातों में जीत लेने की बात करते हैं.
उन्हें क्या मालूम प्यार में,
जीत, जीत नहीं होती और
हार, हार नहीं होती है. 
***********
न तुम सुनती हो, न वो सुनते हैं,
यह हमारी जिंदगी की कैसी कहानी है.
जो किसी को समझ नहीं आती है,
इसलिए कोई सुनना ही नहीं चाहता है.  

मंगलवार, मार्च 08, 2011

नसीबों वाले हैं, जिनके है बेटियाँ

नसीबों वाले हैं, जिनके है बेटियाँ   
घर की लक्ष्मी है लड़की,
भविष्य की आवाज़ है लड़की.
सबके सिर का नाज़ है लड़की,
माता-पिता का ताज है लड़की.
घर भर को जन्नत बनती हैं बेटियाँ,
मधुर मुस्कान से उसे सजाती है बेटियाँ.
पिघलती हैं अश्क बनके माँ के दर्द से,
रोते हुए बाबुल को हंसती हैं बेटियाँ.
सहती हैं सारे ज़माने के दर्दों-गम,
अकेले में आंसू बहती हैं बेटियाँ. 
आंचल से बुहारती हैं घर के सभी कांटे,
आंगन में फूल खिलाती हैं बेटियाँ.
सुबह की पाक अजान-सी प्यारी लगे,
मंदिर के दिए" की बाती हैं बेटियाँ.
जब आता है वक्त कभी इनकी विदाई का,
जार-जार सबको रुलाती हैं बेटियाँ.
समाज व जनहित हेतु संदेश
एक बेटी की पुकार-चाहे मुझको प्यार न देना, चाहे तनिक दुलार न देना, कर पाओ तो इतना करना, जन्म से पहले मार न देना. मैं बेटी हूँ-मुझको भी है जीने का अधिकार. मैया मुझको जन्म से पहले मत मार, बाबुल मोरे जन्म से पहले मत मार. "कन्या-भ्रूण-हत्या".... ना बाबा ना
                                    आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर मेरी एक पुरानी रचना (जिससे अच्छी लगने पर मेरे समाचार पत्र "जीवन का लक्ष्य" से काटकर फोटोस्टेट द्वारा बड़ी करके थाना-कीर्ति नगर, दिल्ली की महिला अपराध शाखा में नोटिस बोर्ड पर लगया गया था) प्रस्तुत है. महिला अपराध शाखा के अधिकारियों ने चाहे अपने फर्ज व कर्तव्य का ईमानदारी से पालन नहीं किया हो. मगर एक समाज व देश के प्रति अपने पत्रकारिता के फर्ज की ईमानदारी के चलते ही अपने लैटर को इन्टरनेट पर डालते समय अपनी पत्नी का नाम "डिलेट" कर दिया है. मुझे फ़िलहाल "गाने" या किसी प्रकार की वीडियों रिकोटिंग इन्टरनेट पर डालना नहीं आता है. लेकिन उपरोक्त पोस्ट पढ़ लेने के बाद इन्टरनेट पर एक बार कृपया करके सलमान खान व नगमा द्वारा अभिनीत "बागी" फिल्म का 'चार दिन की है जिंदगी, हमें अपना फर्ज निभाना है' गीत जरुर सुन लेना. आज अपनी अनेकों बिमारियों के अलावा डिप्रेशन की बीमारी की वजय से कुछ अच्छी रचनाएँ नहीं लिख/कह पाता हूँ. न्याय व्यवस्था के अधिकारियों द्वारा अपना कर्तव्य व फर्ज ईमानदारी से नहीं निभाने के कारण कैसे मेरा जीवन और भविष्य लगभग चौपट हो गया है. अगर आपके पास समय हो तो कृपया किल्क करके संलग्न पत्र जरुर पढ़ें.
आप सभी के विचार निम्नलिखित विषय पर आमंत्रित है.
               क्या आज दहेज और क्रूरता के फर्जी मुकद्दमें दर्ज करा करके पुरुषों से ज्यादा महिलाएं घरेलू अत्याचार नहीं कर रही है? क्या इसमें कुछ फर्जी मुकद्दमों को देखते हुए संशोधन नहीं होने चाहिए? जिससे असली पीड़ित को जल्दी न्याय मिल सकें.
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क्रान्ति का बिगुल बजाये

जनकल्याण हेतु अपनी आहुति जरुर दें
हर वो भारतवासी जो भी भ्रष्टाचार से दुखी है,वो देश की आन-बान-शान के लिए अब भी समाजसेवी श्री अन्ना हजारे का समर्थन करने हेतु एक बार 022-61550789पर स्वंय भी मिस्ड कॉल करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.यह श्री हजारे की लड़ाई नहीं है बल्कि हर उस नागरिक की लड़ाई है. जिसने भारत माता की धरती पर जन्म लिया है.पत्रकार-रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना हैं ज़ोर कितना बाजू-ऐ-कातिल में है